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सौतेला बाप ( भाग - 6 )

अध्याय - ६

वहीं मधुआ का सौतेला बाप जहां बैठा सबसे बाते कर रहा था उसके कानो में जैसे ही खबर पड़ी की मधुआ गिर गया वो सरपट दौड़ कोठर के अंदर भागा और जाते ही उसकी नज़र सामने जमीन पर रोते मधुआ पर गई वो तुरंत जाकर उसे अपनी गोद में समा लिया। 

" तुम ठीक तो हो ना।" 

रोता हुआ मधुआ अपने सौतेले बाप के सिने पर मारता हुआ चिल्लाया -" तुम्हरे वजह से जादुई गोला फूट गया ,तुम सौतेले होना इस लिए।सब सही बोलते है तुम मारोगे हमरी माई को।" 

सौतेला बाप आश्चर्य से बोला -" मैं क्यों मारूंगा?" 

मधुआ -" काहे से तुम सौतेले हो ,पूरा गांव कहता है तुम हमको मारोगे , माई को मारोगे सौतेला बाप कबहु अच्छा नाही होता।" 

इतना सुनना काफ़ी था सौतेले बाप के मन को आघात पहुंचाने को। मधुआ की बात सुन मानो तिल तिल कर उसका दिल टूट रहा था।उसने कस के मधुआ को सिने से लगा लिया और साथ ही मधूआ के सिर को सहला रहा था। 

" कभी नहीं!मैं अपनें प्यारे मधुआ और उसकी माई को कैसे मार सकता हूं।" 

तभी बाहर से कुछ हलचल की आवाजें गूंजने लगी। मधुआ का सौतेला बाप अपने आंखो में आई अश्रु धार को पोंछ कर मधुआ को अपने गोद में उठाए बाहर चौखट तक आए तो देख अंगना में पण्डित बाबा खड़े थे और गबरू उनके साथ ही खड़ा था। मधुआ का सौतेला बाप उनके पास चलता हुआ गया। 

" शुक्रिया आप आए!" 

गबरू को देख पण्डित बाबा बोले -" गबरुआ! जा ऊ मचिया ला तो जरा।" 
गबरू हवा के वेग से भागा और मचिया ले आया।उसके मचिया लाते मंतर ही भुनभुनाहट बढ़ गई। 

" का हुआ पण्डित बाबा को ई गबरुआ के हाथो मचिया ले लिए।" 

" अरे! पण्डित बाबा जो करे वहीं सब सही है बीच में ना बोलो कहीं रूष्ट ना हो जावे।" 

पण्डित बाबा बोले -" माफ कर दो ,अपने घमंड में चूर हो गए थे।" 

मधुआ को अपने गोद में थामे का सौतेला बाप बोला -" माफ़ी मत मांगिए आप बड़े है ,अपनी गलती मान लिए वही बहुत है।" 

" अरे सब काम हुआ के नहीं ।" 

हाथो में चाकू किए छगन दौड़ा आया -" कोहड़ा कहां है?" 

" ले! अबहीं तक कोहड़ा ना मिला , जा...अंदर जा मिल जायेगा।" 

एक आदमी की बात सुन छगना अंदर चला गया। मधुआ का सौतेला बाप खुश था अब सब ठीक था सिवाय एक चीज के। मधुआ के मन में से सौतेले बाप का डर निकालना बाकी था।तो वो मधुआ को थामे निकल गया फुलवा के कमरे में। सौतेले बाप के फुलवा के कोठर जाते थे सबके चेहरे के रंग यूं उड़े जैसे काला नाग फुफकार के चला गया हों सबके सामने से। 

सभी लड़कियां पाहूँन को सामने आते देख हंसी ठिठोली करते देख कमरे से भाग गई बाहर।झुमरी तो पहले ही कोठर के बाहर निकल चुकी थी रसोई के एक कोने में बैठी गुमसुम सी कहीं थी। 

झुमरी के पास आता छगन बोला -" कोहड़ा कहां है।" 

छगन की आवाज अचानक से सुन झुमरी डर से सहम जाती है और वहां से भागने लगती है। उस ओर किसी को न पाकर छगन जल्दी से झुमरी के रास्ते पर खड़ा हो जाता है। 

छगन -" कहां जा रही झुमरिया?" 

झुमरी -" तुमको का है?" 

" हमसे छुपाओगी ,हम पीछे पीछे आ जायेंगे !" 

आंखो में आंसू लिए झुमरी बोली -" ईहे है तुम्हारा काम ,आज हमारे पीछे घूम रहे कल रूपा घर से बाहर आवेंगी उसको देख सलीमा का गीत गाओगे!" 

" कौन बोला ,हम बस तोहरा को देख गाते है हमरी झुमरिया।" 

" ऊ रूपा बोली तुम ऊको देख गाने गाते हो काहे हमारे पीछे आते हो छगन , तुम तो मजा करके चले जाओगे हमरे साथ फिर जानत हव हमरा का होवेगा।" 

" तू हमरा मजा ना हो झुमरी ( झुमरी का हाथ थाम ) तुम पिरेम हो हमरा ,तुम्हारे आलावा केहू को ना ताकते झुमरी ,हम पे विश्वास करो।" 

छगन के यूं हाथ पकड़ने से झुमरी तो लज्जा से पानी - पानी हो गई अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश हुए वो शरमाते हुए मुंह लटकाए बोली -" छगन छोड़ो हमको कोई आ जावेगी!" 

" तो?" छगन प्यार से झुमरी के ओर बढ़ता हुआ बोला।झुमरी झट्ट से अपना हाथ छुड़ा वहां से भाग गई और अब बारी थी छगन के शरमाने की। 

वहीं मधुआ जब सौतेले बाप की गोद में रोता हुआ अपनी माई के कोठर में पहुंचा तो मधुआ के सौतेले बाप को देख मधुआ की माई खड़ी हो गई। 

" माई!" मधुआ भागता हुआ अपनी माई से लिपट गया और ऊपर अश्रु भरे आँखो से अपनी माई को लाल साड़ी में सजी देख उसकी आँखें फैल गई। 

" माई तुम ऐसी रंग वाली साड़ी काहे ना पहनती।आऊर आज काहे पहनी हो?" 

मधुआ की माई फुलवा अपने लाल को प्यार दुलार देते हुए बोली -" तुम्हारे बापू के बजह से ,उनके बजह से हम अब लाल रंग आऊर हर रंग पहन सकते है ,अब तुमको कोई बिन बाप का ना बोलेगा।" 

" मगर ये तो सौतेला हैं ना, हमको मारेगा न?" 

" कभी नहीं, क्योंकि मैं ब्याह कर रहा हूं तुम्हारी माई से ,ना की ख़रीद रहा हूं कि मेरा हक हो जाएगा जो मन वो करू तुम लोगो के साथ?" 

मधुआ अपनी आंखे तरेर कर बोला -" तो ऊ लाल जादुई गोला काहे फुटा?" 

हंसते हुए मधुआ का सौतेला बाप उसके पास आया -" क्योंकि वो गुब्बारा था ,और गुब्बारा हल्के से दबाव से फूट जाता है।" 

" ब्याह का बखत हो रहा!" बाहर एक पण्डित बाबा की आवाज़ आई तो मधुआ का सौतेला बाप मधुआ को देख पूछा -" अपनी माई का हाथ दोगे हमारे हाथ में।" 

" तुम्हारे वजह से माई रंग वाली साड़ी पहन सकती है तो हम मान गए।" मधुआ खुश होते हुए बोल पड़ा। अबकी बार मधुआ का बाप.... अरे रे रे....मतलब सौतेला बाप मधुआ की माई को देख पूछा -" आप तैयार है?" 

" हमरा सौभाग्य है,आप हमरा जीवन सुधार रहे कदमों में रह कर सेवा करेंगे आपकी।" 

मधुआ की माई लंबा घूंघट डाले सर झुकाए बोली। मधुआ का सौतेला बाप बोल पड़ा -" सौभाग्य हमारा है आप हमे अपना रही ,वरना लोग तो पागल बोलते है कि हम कुरीतियों को नहीं मानते। अब चलते है मंडप में इंतजार कर रहे आपका।" 

और उतना बोल वो वहां से चला गया। मधुआ और उसकी माई के चेहरे पर एक मुस्कान सी आ गई ,जिसका कोई मोल ना था। उस मुस्कान का उल्लेख तो बड़े से बड़ा लेखक ना कर पाए तो मैं कौन होती हूं!

कहानी जारी है..!!

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6 Comments

RISHITA

06-Aug-2023 10:05 AM

Nice part

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Gunjan Kamal

16-Nov-2022 08:25 AM

Nice part 👌

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Bahut hi sundar rachna

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